History of khwaja moinuddin chisti in hindi

कौन थे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती? जिनकी दरगाह में मंदिर होने का दावा किया गया पेश, क्यों अजमेर में ही बस गए थे

नई दिल्लीः Who was Khwaja Moinuddin Chishti: राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह चर्चा में बनी हुई है. दावा है कि यहां संकट मोचन महादेव मंदिर है. इसी दावे के साथ अजमेर सिविल कोर्ट में याचिका दायर की गई है.

कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है और मामले में 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी. याचिकाकर्ता ने रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का जिक्र करके दावा किया है कि दरगाह स्थल पर महादेव मंदिर था.

इस मामले में अब अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व विभाग  को 20 दिसंबर को कोर्ट में अपना पक्ष रखना है.

इस मामले की वजह से व्यापक स्तर पर चर्चा में आई ये दरगाह जिन ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की है, आखिर वो कौन हैं, जानिएः

कौन थे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (1141-1236) एक प्रसिद्ध सूफी संत थे. उन्होंने भारत में सूफीवाद और इस्लामिक आध्यात्मिकता के प्रचार में अहम भूमिका निभाई थी.

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गरीब नवाज के नाम से मशहूर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह ही 'अजमेर शरीफ दरगाह' के नाम से प्रसिद्ध है. इसे लेकर ही याचिका दायर की गई है.

उनका जन्म ईरान के सिस्तान क्षेत्र में हुआ था, जो अब संभवतः आधुनिक ईरान या अफगानिस्तान में आता है. उनका परिवार इस्लामिक शिक्षाओं और सूफी परंपराओं से जुड़ा हुआ था.

उन्होंने चिश्ती सिलसिले के प्रमुख सूफी संत ख्वाजा उस्मान हारूनी से दीक्षा ली थी. वह 12वीं शताब्दी के अंत में भारत आए थे और अजमेर में बस गए थे. कहा जाता है कि उन्होंने अपने उपदेशों और व्यवहार से न सिर्फ मुस्लिमों बल्कि सभी धर्मों के लोगों के बीच प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश फैलाया.

अजमेर शरीफ में मनाया जाता है उर्स

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का निधन 1236 में हुआ था.

अजमेर स्थित उनकी दरगाह में हर साल उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उर्स मनाया जाता है. इसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. कहा जाता है कि उनकी वसीयत में लिखा गया था कि उनका मकबरा ऐसी जगह हो जहां हर कोई बगैर किसी भेदभाव के आ सके और अपनी दुआओं को पूरा होते देख सके.

अजमेर में ही क्यों बसे ख्वाजा मोइनुद्दीन

माना जाता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती साहब को एक आध्यात्मिक अनुभव के दौरान भारत जाने का निर्देश मिला था.

इसे वह ऊपर वाले की इच्छा मानकर भारत आए थे और अजमेर को अपनी कर्मभूमि बनाया था. वह अक्सर ध्यान और प्रार्थना के लिए प्राकृतिक स्थानों, पहाड़ियों और शांत वातावरण को चुनते थे. माना जाता है कि इसी वजह से उन्होंने अजमेर को चुना. इसके अलावा अजमेर उस समय भारत के केंद्र में स्थित एक महत्वपूर्ण स्थान था. इसे ख्वाजा साहब ने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता फैलाने के लिए चुना.

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